support rajputana club new blog आज भी मारवाड़ के गाँवों में बड़े-बूढ़े लोग बहू-बेटी को आशीर्वाद स्वरूप यही दो शब्द कहते हैं कि "माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश" अर्थात् हे माता! तू वीर दुर्गादास जैसा पुत्र जन्म दे जिसने मरुधरा (मारवाड़) को बिना किसी आधार के संगठन सूत्र में बांध कर रखा था। उस समय के विशाल मारवाड़ का कोई स्वामी, सामंत या सेनापति नहीं था। सब औरंगजेब के कुटिल विश्वासघात की भेंट चढ़ चुका था। जनता भी कठोर दमन चक्र में फंसी थी। सर्वत्र आतंक लूट-खसोट, हिंसा और भय की विकराल काली घटा छाई थी। उस समय मारवाड़ ही नहीं पूरा भारत त्राहि-त्राहि कर रहा था। ऐसी संकटमय स्थिति में वीर दुर्गादास राठौर के पौरुष और पराक्रम की आंधी चली। मारवाड़ आजाद हुआ और खुले आकाश में सुख की सांस लेने लगा। दुर्गादास एक ऐसे देशभक्त का नाम है जिनका जन्म से मृत्यु पर्यंत संघर्ष का जीवन रहा। दुर्गादास का जन्म 13 अगस्त 1638 को जोधपुर रियासत के गाँव सालवां कलां में हुआ। जन्म से ही पिता का तिरस्कार मिला, माँ -बेटे को घर से निकाला गया और जिस अजीत सिंह को पाल पोसकर दुर्गादास