Posts

Showing posts from September, 2019

SHARE THIS BLOG

शहजादी फिरोजा और जालौर के वीरमदेव सोनगरा चौहान

Image
rajputana club new blog  वि.सं.१३५५ १२९८ ई.में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति अलुगखाखा और नसरतखां ने गुजरात विजय अभियान के लिए जालोर के कान्हड़ देव से रास्ता माँगा परन्तु कान्हड़ देव ने आक्रांताओं को अपने राज्य से होकर आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी | अतः खिलजी के सेना अन्य रस्ते से गुजरात पहुंची और सोमनाथ में लूट पाट की । वापस लौटती हुई खिलजी सेना पर कान्हड़देव ने आक्रमण किया और सेना को भगाया लेकिन उस समय खिलजी का ध्यान रणथम्बोर और चित्तोड़ विजय की और ज्यादा था अतः उनको जीतकर खिलजी ने विक्रमी संवत १३६२ ई.१३०५ में ऍनउलमुल्क सुल्तान के साथ सेना जालोर भेजी लेकिन खिलजी के सेनानायक ने आदरपूर्वक संधि का आश्वासन दिलाकर कान्हड़ देव को दिल्ली भेज दिया , और फिर उनके पुत्र वीरमदेव भी दिल्ली दरबार में रहने लगे इधर से शुरू होती है वीरमदेव और फिरोजा की प्रेम दास्तान कान्हड़देव का पुत्र वीरमदेव एक सुडौल शरीर का तेजवान राजवंशी था उनकी वीरता में एक दोहा प्रसिद्ध है:- "सोनगरा वंको क्षत्रिय अणरो जोश अपार । झेले कुण अण जगत मे वीरम री तलवार ।।" दिल्ली दरबार में रहने के दौरान वंहा की एक शहजादी फिर

अकबर की सेना से तीन बार लोहा लेने वाली साहसी रानी दुर्गावती की जीवनी

Image
 दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था |दुर्गावती जी के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी. बचपन से ही उन्हें वीरतापूर्ण एवं साहस भरी कहानियां सुनना व पढ़ना अच्छा लगता था. पढाई के साथ – साथ दुर्गावती ने घोड़े पर चढ़ना, तीर तलवार चलाना, अच्छी तरह सीख लिया था. rajputana club new blog शिकार खेलना उनका शौक था. वे अपने पिता के साथ शिकार खेलने जाया करती थी. पिता के साथ वे शासन का कार्य भी देखती थी. विवाह योग्य अवस्था प्राप्त करने पर उनके पिता मालवा नरेश ने राजपूताने के राजकुमारों में से योग्य वर की तलाश की. परन्तु दुर्गावती गोडवाना के राजा दलपतिशाह की वीरता पर मुग्ध थी. दुर्गावती के पिता अपनी पुत्री का विवाह दलपति शाह से नहीं करना चाहते थे. अंत में दलपति शाह और महोबा के राजा का युद्ध हुआ. जिसमे दलपति शाह विजयी हुआ. इस प्रकार दुर्गावती और दलपति शाह का विवाह हुआ. दुर्गावती अपने पति के साथ गढ़मंडल में सुखपूर्वक रहने लगी. इसी बीच दुर्गावती के पिता की मृत्यु हो गई और महोबा तथा कालिंजर पर अकबर का अधिकार हो गया. विवाह

नागणेच्या माता - राठौड़ वंश की कुलदेवी का कन्नौज से नागाणा का सफर

Image
एक बार बचपन में राव धुहड जी ननिहाल गए तो वहां उन्होने अपने मामा का बहुत बडा पेट देखा बेडोल पेट देखकर वे अपनी हँसी रोक नही पाएं और जोर जोर से हस पडे तब उनके मामा को गुस्सा आ गया और उन्होने राव धुहडजी से कहा की सुन भांनजे तुम तो मेरा बडा पेट देखकर हँस रहे हो किन्तु तुम्हारे परिवार को बिना कुलदेवी देखकर सारी दुनिया हंसती है तुम्हारे दादाजी तो कुलदेवी की मूर्ति भी साथ लेकर नही आ सके तभी तो तुम्हारा कही स्थाई ठोड ठिकाना नही बन पा रहा है मामा के ये कडवे बोल राव धुहडजी के ह्रदय में चुभ गये उन्होने उसी समय मन ही मन निश्चय किया की मैं अपनी कूलदेवी की मूर्ति अवश्य लाऊगां और वे अपने पिताजी राव आस्थानजी के पास खेड लोट आए किन्तु बाल धुहडजी को यह पता नही था कि कुलदेवी कौन है उनकी मूर्ति कहा है और वह केसे लाई जा सकती है आखिर कार उन्होने सोचा की क्यो न तपस्या करके देवी को प्रसन्न करूं वे प्रगट हो कर मुझे सब कुछ बता देगी और एक दिन बालक राव धुहडजी चुपचाप घर से निकल गये और जंगल मे जा पहुंचे वहा अन्नजल त्याग कर तपस्या करने लगे rajputana club new blog बालहट के कारण आखिर देवी का ह्रदय पसीजा उन्हे तपस्या कर