शहजादी फिरोजा और जालौर के वीरमदेव सोनगरा चौहान
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वि.सं.१३५५ १२९८ ई.में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति अलुगखाखा और नसरतखां ने गुजरात विजय अभियान के लिए जालोर के कान्हड़ देव से रास्ता माँगा परन्तु कान्हड़ देव ने आक्रांताओं को अपने राज्य से होकर आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी | अतः खिलजी के सेना अन्य रस्ते से गुजरात पहुंची और सोमनाथ में लूट पाट की । वापस लौटती हुई खिलजी सेना पर कान्हड़देव ने आक्रमण किया और सेना को भगाया लेकिन उस समय खिलजी का ध्यान रणथम्बोर और चित्तोड़ विजय की और ज्यादा था अतः उनको जीतकर खिलजी ने विक्रमी संवत १३६२ ई.१३०५ में ऍनउलमुल्क सुल्तान के साथ सेना जालोर भेजी लेकिन खिलजी के सेनानायक ने आदरपूर्वक संधि का आश्वासन दिलाकर कान्हड़ देव को दिल्ली भेज दिया , और फिर उनके पुत्र वीरमदेव भी दिल्ली दरबार में रहने लगे इधर से शुरू होती है वीरमदेव और फिरोजा की प्रेम दास्तान कान्हड़देव का पुत्र वीरमदेव एक सुडौल शरीर का तेजवान राजवंशी था उनकी वीरता में एक दोहा प्रसिद्ध है:- "सोनगरा वंको क्षत्रिय अणरो जोश अपार । झेले कुण अण जगत मे वीरम री तलवार ।।" दिल्ली दरबार में रहने के दौरान वंहा की एक शहजादी फिरोजा को उनसे प्रेम हो गया चूँकि उस समय इस तरह के राजनैतिक विवाह सम्बन्ध प्रचलन में नहीं थे इसलिए फिरोजा और वीरमदेव का विवाह संभव नहीं हो पाया लेकिन फिरोजा का वीरमदेव के प्रति प्रेम बहुत ज्यादा बढ़ गया था वह मन हिम वीरमदेव को अपना पति मान चुकी थी , इधर वीरमदेव ने सामाजिक और कुल की परम्पराओ को ध्यान में रखते हुए फिरोजा से विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और जिस कारन वश युद्ध की सम्भावना और प्रबल हो गयी फिर खिलजी ने जालोर पर आक्रमण के लिए 5 वर्षो तक कई सैन्य टुकड़ियां भेजी, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी और आख़िरकार ईस्वी १३१० में स्वयं खिलजी एक बड़ी सेना लेकर जालौर के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर आक्रमण किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त व मांस डलवा दिया जिससे पीने का पानी दूषित हो गया। इसलिए सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध की घोषणा करके केसरिया बाना पहन लिया। जिससे रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीर शाका करके अन्तिम युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए इसके बाद खिलजी ने अपनी सेना को जालौर पर आक्रमण का हुक्म देकर स्वयं दिल्ली आ गया | उसकी सेना ने मारवाड़ में लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया | फिर कान्हड़ देव ने कुछ जगह खिलजी सेना पर आक्रमण कर उसे हराया और दोनों सेनाओ के बीच कई दिनों तक युद्ध चलता रहा । आखिरकार खिलजी ने जालौर के लिए सेनापति कमालुद्दीन को विशाल सैन्यदल के साथ जालौर भेजा फिर सेनापति ने जालौर दुर्ग के चारों और बड़ा घेरा डाल युद्ध किया लेकिन जालौर नहीं जीत सका और अपनी वापस जाने लगा तभी कान्हड़ देव के एक सरदार विका ने जालौर से लौटती खिलजी सेना को दुर्ग के गुप्त और खुले रस्ते का रहस्य बता दिया | विका के इस विश्वासघात के कारण विका की पत्नी ने विका को जहर देकर मार दिया । इस तरह विश्वासघाती की वजह से जालौर पर खिलजी सेना का कब्जा हो गया वि.स.१३६८ में कान्हड़ देव ने विरमदेव को गद्दी पर बैठाकर अंतिम युद्ध किया | जालौर दुर्ग में रानियों के अलावा अन्य औरतों ने जौहर किया और कान्हड़ देव शाका करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए वीरमदेव ने अपने शाशनकाल में साढ़े तीन साल युद्ध में बिताए और फिर वीरमदेव ने भी केसरिया बाना पहन कर अंतिम युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । तथा दुर्ग की महिलाओं ने जौहर कर लिया विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की सनावर नाम की धाय भी युद्ध में सेना के साथ आई थी वो वीरमदेव का मस्तक काट कर उसे सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई | और कहते है कि जब विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सामने लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया तब व्यथित शहजादी फिरोजा ने अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाई.. "तज तुरकाणी चाल हिंदूआणी हुई हमें | भो-भो रा भरतार , शीश न धूण सोनीगरा ||" फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार किया और स्वयं माँ से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो गयी ये कथा स्वयं में एक भव्यता लिए हुए है (कान्हड़दे प्रबंध तथा अन्य संदर्भ पुस्तको व जन मानस से साभार) |
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