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हाड़ौती का चौहान वंश

वर्तमान हाड़ौती क्षेत्र पर चौहान वंशीय हाड़ा राजपूतों  का अधिकार था। प्राचीन काल में इस क्षेत्र पर मीणाओ  का अधिकार था। ऐसा माना जाता है कि बून्दा मीणा के नाम पर ही बूंदी  का नामकरण हुआ। कुंभाकालीन राणपुर के लेख में बूँदी का नाम ‘वृन्दावती’ मिलता है। राव देवा ने मीणाओं को पराजित कर 1241 में बूँदी राज्य की स्थापना की थी। बूँदी के प्रसिद्ध क़िले तारागढ़ का निर्माण बरसिंह हाड़ा ने करवाया था। तारागढ़ ऐतिहासिक काल में भित्ति चित्रों के लिए विख्यात रहा है। बूँदी के सुर्जनसिंह ने 1569 में अकबर  की अधीनता स्वीकार की थी। बूँदी की प्रसिद्ध चौरासी खंभों की छतरी शत्रुसाल हाड़ा का स्मारक है, जो 1658 में सामूगढ़ के युद्ध में औरंगज़ेब के विरुद्ध शाही सेना की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। बुद्धसिंह के शासन काल में मराठों ने बूँदी रियासत पर आक्रमण किया था।
प्रारम्भ में कोटा बूँदी राज्य का ही भाग था, जिसे शाहजहाँ ने बूँदी से अलग कर माधोसिंह को सौंपकर 1631 ई. में नए राज्य के रूप में मान्यता दी थी। कोटा राज्य का दीवान झाला जालिमसिंह इतिहास चर्चित व्यक्ति रहा है। कोटा रियासत पर उसका पूर्ण नियन्त्रण था। कोटा में ऐतिहासिक काल से आज तक कृष्ण की भक्ति का प्रभाव रहा है। इसलिए कोटा का नाम नन्दग्राम भी मिलता हैं। बूँदी-कोटा में सांस्कृतिक उपागम के रूप में यहाँ की चित्र शैलियाँ विख्यात रही हैं। बूँदी में पशु-पक्षियों का श्रेष्ठ अंकन हुआ है, वहीं कोटा शैली शिकार के चित्रों के लिए विख्यात रही है।

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