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वीर दुर्गादास राठौड़ (veer Durga das rathore )

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दुर्गादास राठौड़ (दुर्गा दास राठौड़) (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718) भारत के मारवाड़ क्षेत्र के राठौड़ राजवंश के एक मंत्री थे। वे महाराजा जसवंत सिंह के निधन के बाद कुँवर अजित सिंह के सरांक्षक बने। उन्होंने मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब को भी चुनौती दी और कई बार ओरंग़ज़ब को युद्ध में पीछे हटने ओर संधि के लिए मजबूर किया और कई बार युद्ध में हराया। वीर शिरोमणी दुर्गादास राठौड़ वो शख़्स थे जिन्होंने मारवाड़ तथा यहाँ के राजवंश दोनों को मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के कोपभाजन से बचाकर इसके गौरवशाली इतिहास को क़ायम रखा ! धर्मांध औरंगज़ेब नें सता हासिल करनें के लिए हर उस शख़्स को अपनें रास्ते से हटाया जो उसके लिए रौड़ा थे वो चाहे उसके अपनें सग्गे भाई दारा,सूजा,मुराद ही क्यों नहीं हो जिनको मारकर तथा अपनें जन्मदाता शाहजंहा को केद में डालकर उसनें राजगद्दी प्राप्त करी थी ! उसनें अनेकों अनेक प्राचीन मंदिरों को नेस्तनाबूद किया और उन मंदिरों की मूर्तियों को मस्जिदों की सीड्डियों की जगह लगाकर मंदिरों की जगह को मस्जिदों में परिवर्तित किया ! उसनें उन सभी को मरवाया जिसनें अपना धर्म नहीं बदला चाहे वो शिवाजी महाराज के पु

RAJPUT SAMRAT MIHIR BHOJ

यह भारत के वह महान राजपूत राजा है, जिन्होंने देश की बेटियों को गुड़िया ओर चूड़ियां देकर कमलंगी नही बनाया ।  गुड़िया के स्थान पर बेटियों - बहनो को ढाल दी, ओर चूड़ियों के स्थान पर दुधारी तलवार । कारण था आठवीं सदी में उस समय इस्लाम का सितारा बुलंदी पर थे, यह लोग विश्व विजेता थे, भारत से दस गुना बड़ा इनका विश्व मे साम्राज्य फैल चुका था । उस समय सम्राट मिहिरभोज परिहार ने लाखों की सेना खड़ी कर दी । इस्लाम के उस उत्कर्ष के काल मे भी मातृशक्ति की सहायता से महाराज मिहिरभोज ने चालीस बार अरबो को परास्त किया, सिन्ध में उंन्हे मार मार कर एक गुफा तक सीमित कर दिया, ऐसा मजबूत प्रतिहार राजपूत साम्राज्य इन्होंने खड़ा किया, जिससे अरबो की 300 वर्ष तक भारत की ओर मुख करने की हिम्मत नही हुई । सम्राट मिहिरभोज परिहार को भगवान विष्णु को अवतार भी कहा जाता है, क्यो की उस समय असुरो के भय से भारत थर थर कांप रहा था, भगवान विष्णु ने जैसे अपनी चारो भुजाओं से समंदर को मथा था, उन्ही की  भांति मिहिरभोज ने अपनी भुजाओ से अरबी , तुर्की राक्षसो को मथ दिया था । सम्राट मिहिरभोज बहुत दयालु, ओर दानी थे, लेकिन असुरो ( गैर - सनातनी ) से
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जय राणा प्रताप करीब 200 साल पहले क्षत्रियोँ के पास देश की 84% जमीन हुआ करती थी । आजादी के बाद यह प्रतिशत घटकर 52 % हुआ । सन् 2000 मेँ 31% और सन् 2013 मे 16% । आने वाले 10 साल मेँ परिस्थितियाँ क्या होँगी, यह शायद आप मुझसे भी बेहतर समझ पायेँ । #कारण...... 1- बेटी की शादी है- #जमीन_बेच_दो । 2- घर बनवाना है- #जमीन_बेच_दो । 3- नशा करना है- जमीन बेच दो । 4-लडाई झगडे का केश लडना है- जमीन बेच दो । 5-चाहे कुछ भी हो- जमीन बेच दो । अरे भाई जमीन कोई सामान नहीँ "अचल सम्पत्ति है , हमारी शान है, हमारी मूल, हमारी पहचान है । अगर जमीन को "माँ" की सँज्ञा दी जाये तो अतिशयोक्ति नहीँ होगी और जो अपनी जरुरतेँ पूरी करने के लिये माँ का सौदा करे वो काहे का क्षत्रिय । *भाइयो* शब्द कडवे जरुर हैँ पर सच हैँ । शपथ लेते हैँ कि कुछ भी करेँगे चाहे वो मजदूरी ही क्योँ न हो पर जमीन नहीँ बेचेँगे । हम क्षत्रिय हैँ क्षत्रिय। जो जिसका सारे संसार ने लोहा माना है खुद मिट जायेँगे पर अपना वजूद नहीँ बिकने देँगे ।!! जय राजपुताना।।।